Ranchi : झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महासचिव आलोक कुमार दूबे ने कहा कि 2019 के पूर्व स्थापित विद्यालयों को आरटीई मान्यता हेतु पुनः आवेदन की प्रक्रिया में फँसाना न केवल माननीय उच्च न्यायालय के आदेश की अवमानना है, बल्कि यह झारखंड के लाखों बच्चों और शिक्षकों के भविष्य से खिलवाड़ है। माननीय उच्च न्यायालय में राज्य सरकार द्वारा दाखिल शपथ पत्र में स्पष्ट उल्लेख है कि 2019 से पहले स्थापित न तो निजी विद्यालयों और न ही सरकारी विद्यालयों पर 2019 का संवैधानिक संशोधन लागू होगा। कोर्ट के आदेश के पॉइंट संख्या 51 (III) और (IV) में साफ कहा गया है कि दोनों प्रकार के विद्यालयों को एक समान छूट प्रदान की जाएगी।
उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि जब स्वयं सरकारी विद्यालय भी 2019 के पूर्व स्थापित हैं और उन पर यह प्रावधान लागू नहीं होता, तो निजी विद्यालयों को दोबारा आवेदन करने के लिए क्यों विवश किया जा रहा है? यह सीधा-सीधा भेदभाव और बच्चों के अधिकारों का हनन है।
2009 का RTE और 2019 में मनमानी
आलोक दुबे ने कहा कि 2009 में यूपीए सरकार ने आरटीई कानून लागू कर गरीब और वंचित वर्ग के 25 प्रतिशत बच्चों को निजी विद्यालयों में दाखिला दिलाने का प्रावधान किया था और उनकी फीस केंद्र एवं राज्य सरकार मिलकर वहन करती थी। उस कानून में कहीं भी जमीन की बाध्यता का उल्लेख नहीं था, बल्कि केवल ऐसे सर्वकालिक भवन की अनिवार्यता थी जिसमें ग्रीष्म, वर्षा और शीत ऋतु में विद्यालय का संचालन सुचारू रूप से हो सके। लेकिन 2019 में रघुवर दास सरकार ने मनमाने तरीके से जमीन की शर्तें जोड़ दीं—कक्षा 1 से 5 तक के लिए 45 डिसमिल, 5 से 8 तक के लिए 65 डिसमिल, और 8 से 10 तक के लिए शहर में डेढ़ एकड़ तथा ग्रामीण इलाके में दो एकड़ जमीन की अनिवार्यता कर दी। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से जब इस विषय पर चर्चा हुई थी, तो उन्होंने भी मौखिक रूप से स्वीकार किया था कि शहरों में इतनी जमीन उपलब्ध ही नहीं है, हमें ऊपर की ओर विस्तार करना होगा।
झारखंड कांग्रेस महासचिव ने कहा कि सरकार अपने शपथ पत्र और न्यायालय के आदेश को ठीक से पढ़े, जिसमें सरकार ने शपथ पत्र में साफ कहा है कि यह प्रावधान 2019 से पूर्व स्थापित विद्यालयों पर लागू नहीं होगा। और यदि सरकार इसे लागू करने की जिद पर अड़ी है, तो यह सरासर नाजायज है। यह प्रावधान केवल निजी विद्यालयों पर नहीं बल्कि सरकारी विद्यालयों पर भी समान रूप से लागू होना चाहिए, क्योंकि दो अलग-अलग कानूनों से शिक्षा व्यवस्था नहीं चलाई जा सकती।
अफसर भाजपा के इशारे पर, मुख्यमंत्री तक नहीं पहुँच रही सच्चाई’
आलोक दुबे ने आरोप लगाया कि कुछ अफसर भाजपा के इशारे पर काम कर रहे हैं और पूरे मामले की सच्चाई मुख्यमंत्री तक नहीं पहुँचा रहे। उन्होंने कहा कि शिक्षा जैसे संवेदनशील क्षेत्र में भी अफसरशाही राजनीति का शिकार हो रही है। मुख्यमंत्री की आंखों में धूल झोंककर ये अधिकारी भाजपा के एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं।उन्होंने कहा कि यह साजिश झारखंड की शिक्षा व्यवस्था को बर्बाद करने की दिशा में खतरनाक कदम है। यदि समय रहते सरकार ने गंभीर पहल नहीं की, तो लाखों दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग के बच्चों की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रभावित होगी और लाखों शिक्षक बेरोजगार हो जाएंगे।
ज्ञापन सौंपा, मंत्री ने दिया आश्वासन
आलोक दुबे ने बताया कि इस बाबत ज्ञापन माननीय मंत्री दीपिका पाण्डेय सिंह को सौंपा गया है, जिन्होंने कार्रवाई का आश्वासन दिया है। वहीं, मंत्री सुदिव्य सोनू ने इस पूरे प्रकरण पर अनभिज्ञता जाहिर की है। दुबे ने कहा कि यह स्थिति बताती है कि अधिकारी सच्चाई छुपा रहे हैं और सरकार को गुमराह कर रहे हैं।
शिक्षा व्यवस्था ध्वस्त करने की भाजपा की साजिश’
आलोक दुबे ने कहा कि भाजपा हमेशा से शिक्षा और सामाजिक न्याय विरोधी नीतियों को आगे बढ़ाती रही है। अब अफसरशाही के जरिए राज्य के बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ किया जा रहा है। 2019 के पूर्व स्थापित विद्यालयों को पुनः मान्यता आवेदन कराने की मजबूरी उसी एजेंडे का हिस हस्तक्षेप कर न्यायालय के आदेश का पालन सुनिश्चित करें’
आलोक दुबे ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से अपील की कि वे इस मामले पर तत्काल संज्ञान लें और अधिकारियों से पूरे तथ्यों के साथ जवाब मांगें। उन्होंने कहा कि भाजपा मानसिकता वाले अधिकारियों की चालबाज़ियों पर रोक लगाना आवश्यक है।
उन्होंने विश्वास जताया कि मुख्यमंत्री इस मुद्दे पर सकारात्मक पहल कर 2019 के पूर्व स्थापित विद्यालयों को पुनः आवेदन से मुक्त करेंगे, जिससे लाखों बच्चों की शिक्षा सुरक्षित हो सके और शिक्षकों का भविष्य अंधकारमय होने से बच सके।

