Ranchi: रांची में छठ महापर्व की रौनक चरम पर है। इस बार शहर के विभिन्न इलाकों में कृत्रिम तालाबों की संख्या में उल्लेखनीय इजाफा हुआ है, जिनमें हजारों श्रद्धालु निर्जला उपवास रखकर सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करने पहुंच रहे हैं। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इस पहल की शुरुआत वर्ष 2018 में डोरंडा से हुई थी, जब झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के वरिष्ठ नेता एवं रांची महानगर छठ पूजा समिति के मुख्य संरक्षक आलोक कुमार दूबे ने मात्र 10 लोगों के साथ मिलकर 2018 में पहला कृत्रिम तालाब बनवाया था।

बाद में कोरोना महामारी के कारण श्रद्धालुओं के लिए नदियों तक जाना कठिन हो गया था। स्वच्छता और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए आलोक कुमार दूबे ने अपने स्तर से स्थानीय लोगों को संगठित किया और डोरंडा छप्पन सेट क्षेत्र में एक छोटा कृत्रिम तालाब आज भव्य और बृहत रुप ले चुका है जहां सैंकड़ों व्रति और हजारों लोग श्रद्धा से डुबकी लगाते हैं और अर्घ्य अर्पित करते हैं। लॉक डाउन के समय भीड़ ओर श्रद्धा को देखते हुए आलोक दूबे ने कृत्रिम तलाब को एक बड़ा रूप दे दिया जो पूरे राज्य के लिए एक उदाहरण बन गया है।

 

श्रद्धालुओं का अपार आशीर्वाद भी मिल रहा है।टैंकर से शुद्ध पानी डाला जाता है ,गंगा जल प्रवाहित किया जाता ,गुलाब की पंखुड़ियां डाली जाती हैं।लाइट,माईक लगाये जाते हैं, समिति के सदस्य रात भर जगते हैं ताकि तालाब का पानी को झूठा नां कर सके और उदीयमान सूर्य को वर्तियां शुद्धता के साथ अर्घ्य दें सकें। त्योहार खत्म होने के बाद तालाब को भर दिया जाता है और यही प्रयास आज एक जनांदोलन का रूप ले चुका है।

 

इस ऐतिहासिक पहल में उनके साथ गौतम कुमार दूबे, मनोज सिंह, संजय सिंह, शशि गोलू, पंकज तिवारी, विवेक सिंह, मेंहुल दूबे, दिलीप सिंह, बाबू, अश्विनी कुमार, विशाल सिंह, महेंद्र प्रसाद, अजय थापा, विजय गुप्ता, दीपक ठाकुर, गोपाल छेत्री और अनिकेत कुमार सक्रिय रूप से जुड़े रहे, जिन्होंने स्थानीय स्तर पर लोगों को प्रेरित किया और छठ घाटों की व्यवस्था में सहयोग दिया।

 

आलोक कुमार दूबे, जो वर्तमान में रांची महानगर छठ पूजा समिति के मुख्य संरक्षक भी हैं, ने कहा कि छठ केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि सामाजिक एकता, स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देने वाला पर्व है। नदियों में बढ़ते प्रदूषण और दूषित जल से श्रद्धालुओं को त्वचा रोग और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा रहता है, ऐसे में कृत्रिम तालाब एक स्वच्छ और सुरक्षित विकल्प हैं। विशेषकर व्रतियां निर्जाला रहती हैं तो उन्हें अपने मुहल्ले में ही एक अनुकूल वातावरण मिल जाता है।

उन्होंने यह भी कहा कि “छठ व्रत करने वाली माताएं और बहनें अब अपने घरों के पास ही अर्घ्य दे सकती हैं, जिससे उन्हें अधिक सुविधा और सुरक्षा मिलती है। यही इस पहल का मूल उद्देश्य भी था — श्रद्धालुओं को सहूलियत और पर्यावरण को सुरक्षा देना।”

 

वर्तमान में डोरंडा और आसपास के इलाकों में छठ व्रतियों ने पहले से ही तैयारी शुरू कर दी है। कई व्रती महिलाएं और परिवार रांची महानगर छठ पूजा समिति के सदस्यों से मिलकर जानकारी प्राप्त कर रहे हैं और कृत्रिम तालाबों के पास की व्यवस्थाओं को देख रहे हैं। समिति के सदस्य भी लगातार विभिन्न इलाकों में जाकर श्रद्धालुओं को सहयोग और दिशा-निर्देश दे रहे हैं।

 

आलोक कुमार दूबे ने जिला प्रशासन और नगर निगम से आग्रह किया कि वे इस जन-उद्यम को स्थायी रूप दें। उन्होंने कहा कि अगर प्रशासन और निगम स्थानीय जनप्रतिनिधियों से समन्वय बनाकर काम करें, तो हर वार्ड में स्वच्छ और सुंदर कृत्रिम तालाबों का स्थायी निर्माण संभव है, जिससे भविष्य में नदी प्रदूषण में भी कमी आएगी।

 

आज डोरंडा की यह पहल रांची समेत पूरे झारखंड में एक मिसाल बन चुकी है — जहां श्रद्धा, स्वच्छता, पर्यावरण संरक्षण और जनसहयोग का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।

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